क्यों सोचते हो जीवन सफल नहीं ?
आत्म हत्या केवल इसका हल नहीं
तू जता न अपने जीवन पे खेद
बना लक्ष्य जग समक्ष उसको भेद ।
पग-पग मिलेगा जग में तुझको छल
हरदम रख तू अपना विश्वास अटल
लक्ष्य अक्ष से ना ओझल होने पाये
चाहे अंधकार कितना भी हो जाए ।
जीवन में कितना भी हो उथल- पुथल
पर संभावनाएं मिट जाती नहीं सकल
कुदरत भी परखता रहता है सबको
वरदान देगा वह आखिर किसको ?
हर चक्रव्यूह तोड़ो रण मत छोड़ो
जीवन भी है एक रणभूमि समान
लड़ते रहो, बढ़ते रहो, गढ़ते रहो
अंतिम शयन घर सबका शमशान ।
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