वक्त ने मुझको कहां से कहां पहुंचाया ?
सोचा नहीं था उसने ऐसे आजमाया
मेरे समेटने के उसने सारे इंतजाम कर लिए थे
बीजों की तरह मैं खुदको बिखेरता चला आया
वक्त ने मुझे कहां से ……..
लड़खड़ा आता रहा मैं सोने पन में हरदम
मुस्लिमों ने ही मुझे चलना सिखाया
पर वह नहीं कि कभी है मैंने हालातों की
तकलीफों में भी मैंने खुलकर मुस्कुराया
वक्त ने मुझको कहां …………
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