बादलों से बात
बड़ी मुद्दत के बाद आज
मैंने बादलों से बात की
पूछा मैंने आजकल बहुत
कहाँ आते जाते रहते हो
उसने मुझसे ही यह फरियाद किया
आप के कारनामों ने हमें बर्बाद किया
कहीं का हमें नहीं छोड़ा
भागते जाते हैं पवन पछेड़ा
हमें हरियाली की प्यास है
आपको पानी की तलाश है
मनाते हो उद्योगों की दिवाली रोज
पानी कम होता हमारी करते खोज
रोज पिलाते हमको जहर
प्रकृति ढाती तुमपे कहर
सूख रहा है शहर शहर
कामों को तू देख ठहर ।
ऊपर आके देख धरती का हाल
टूटने लगा है कैसे ? खाद्य जाल
तू है ऐसी कड़ी टूटे को जोड़ ले
सब जीवों से नाता मत तोड़ ले ।
हमें ओढ़ादो हरियाली की चादर
बरसेंगे हम देख कैसे बादर
सावन की होगी फिर झड़ी
जुड़ जाएंगे फिर टूटी कड़ी ।
कांक्रीटो का बनाया जाल
धरती में ना मारो सेंध
गर्मी हो रही है फटेहाल
होगा तेरा जी का जंजाल ।
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