कुहासे बादल
नदी भी चंचल
पवन का जोर
मन से विभोर ।
काले बनके डराते
बिजली से चमकाते
गड़गड़ाते बादल
बड़बड़ाते बादल ।
काले – काले मतवाले
सावन-भादों को बुलाते
पानी की बूंद गिराते
पंख लगाके उड़ जाते ।
बनाके दिखाते कई रूप
कभी छांव तो कभी धूप
आसमान में ये छा जाते
इशारे करके हमें बुलाते ।
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