पहाड़ों की तलहटी के पास
मैदानों के कहीं ऊंचे टीले
दूर तलक फैली चौड़ी घाटी
विशाल मैदान कहीं पहाड़ियां
ऊंची – ऊंची कहीं छोटी-छोटी
पहाड़ों के दामन तक घाटी चली
क्षितिज पर है सतरंगी धूप खिली
होने लगी है चिड़ियों की चहगान
खिलउठे हैं फूलों की मुस्कान
उन्मुक्त स्वच्छ नीलगगन
पहाड़े गगन को देती चुंबन
बहती मंद-मंद सुरभित समीर
टटोलता पथिकों के जमीर
नीली नदियां नीला नभ
दिखा रही अपना करतब …….
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