बहुत पड़ी पुस्तक पोथी
क्या हुआ स्वार्थी ?
ढ़ोंग सब बंद कर
देख ले इत्मीनान से एक नजर
स्थलमंडल, जलमंडल ,वायुमंडल
अंतरिक्ष ,वन, वृक्ष
पशु -पक्षी , जड़- चेतन
सब व्यथित कुछ पुकारते ,गुहारते
कह रहे हैं तुझे निहारते
सुन सब की व्यथा की कथा
तुझको प्रकृति करती सचेत
सुखा ,सुनामी ,भूकंप ,बाढ़
प्रकृति देती तुमको लताड़
विकास का पैमाना बदल
सतत विकास सब जानते
पर नहीं यहां कोई मानते
क्या यही तेरी महानता है ?
वसुदेव कुटुंबकम वेदों में उच्चारित
सभी ऑर्गेनिक की ओर लौटो
तेरी दुर्बुद्धि सब पर पड़ती भारी
चारों तरफ है महामारी
अर्थव्यवस्था में व्यवस्था समा रही
नई आफतों को बुला रही ।
बन मितव्ययी ओ अपव्ययी
दिखावे में ना बर्बाद हो
आधुनिकता की अंधी दौड़
सब लगते गौण………
सामाजिक मूल्य छितरे -बिखरे
तकनीकीयों का जाल
सूचनाओं का कमाल
भ्रम के साम्राज्य का विस्तार
वास्तविकता का बोध कहां ?
बेलगाम घोड़ों की रेस
अब रोके नहीं रुकती
शेयर सूचकांक की बुलंदी
बुल्स – बियर की लड़ाई
हरदम बढ़ती जाती खाई
मास मीडिया का रोल
खाई में सब होता धराशाई
कृत्रिम मानव का दानव
भाव सुनी ,जड़ विकसित
वेदनाओं का ना होता ज्ञान
किसी को किसी का नहीं संज्ञान
वरदान या अभिशाप विज्ञान
अचरज में गोता लगाता जहान ।
उत्तर आधुनिकता एक बड़ा रोग
भीड़ बड़ी, हैं लाखों लोग
सब अनजान
ढूंढते पहचान
कीमत क्या है ?
लोगों की जान
व्यक्तिवाद की पराकाष्ठा
अलगाववाद की चरम सीमा
एक महा विस्फोट
कोई ना रोक टोक
नोवल कोरोनावायरस
गंध – सुगंध का भारी शौकीन
जिसको पकड़ता जकड़ता
उससे यह सब लेता छीन
और तो और सब स्वादहीन
गले में खराश
उड़ाता हमारा उपहास
पियो गरम लेमन वाटर
मेंढक की तरह करो टर- टर ।
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