अंदर धंस रहा हूं …..
खुद को बाहर
कैसे मैं निकालूं ?
मुझसे दूर क्यों हो खड़ी ?
आकर मुझे संभालो …..
अंधेरे में खुद को जलाउंगा
तभी तो रोशनी होगी
उजाले में खुद को …….
तभी देख पाऊंगा
कभी अंधेरा दूर होगी…..
सूरज की किरणों में सब दिखता है
पर यह है केवल आधी बात
तमस में मन साथ है
रात से ही होती पूरी बात
तभी अंधेरे में भी नूर होगी …….
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