Anant yatra

 

अनन्त यात्रा

 

निकल पड़ा हूं अनंत यात्रा में 

आया था जा रहा हूं 

ढूंढना नहीं मैं कहां हूं 

आओ मुझे  विश्राम दो 

निकल पड़ा हूं अनंत यात्रा में 

निकल पड़ा हूँ ……… 

 

सूर्य जो अस्त हो रहा 

नवप्रभात ले उदित होगा 

मौन हूं अब तुम बोलो 

किया क्या ? हमने टटोलो 

विचार मेरे शब्द भाव तुम्हारे 

आओ भावनाओं को मेरे एक अंजाम दो 

निकल पड़ा हूं ……….

 

आए सभी जनमानस सुनो 

जिन ध्येय को समेटा था मैं 

उनगठरियों  को सब लेकर जाना 

खोलना कभी एकांत में 

विचार है मेरे अरमानों के पंख 

आओ मुझे एक नई उड़ान दो 

निकल पड़ा हूं …….. 

 

आता है वह जाता है 

जाने वाला फिर आता है 

बीज से वृक्ष वृक्ष से बीजों में 

जीवन का ही सार है 

कर्मों की परीक्षाएं मैने भी दी  

पंचों आओ अब मुझे परिणाम दो 

निकल पड़ा हूं ……….

 

जाना है बहुत दूर हमें 

थका ,बंद पड़ा अब मेरा शरीर 

क्या करूं अब तुम बोलो ?

विचारों में ही बस जान है

आओ सभी अग्नि का अब मुझे स्नान दो 

निकल पड़ा हूं ………

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