खुद से प्रश्न करता
खुद ही उत्तर ढूढ़ता
कभी मन कचोटता
खुदको तोलता मोलता
जीवन को झकझोर
देखता हर ओर छोर
समझ न पाता जब मैं
खुदको तोड़ता जोड़ता
नया कुछ खोजता……
भावों के घटाओं से
बून्द बनके गिरता
बहके अनुभूतियों की धार
बिखरता और निखरता
अंतस की अगन खौलाएं
भाप बनकर मैं उड़ता
शक्ति का एहसास होता
होके शीतल सा जल
आसुत मैं बनता ……..
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