Aam aadmi hun | आम आदमी हूँ

man sitting on chair near wall

आम आदमी हूं 

सब आदमी को आम समझता हूं 

मेरे लिए कोई नहीं खास 

सब पर करता विश्वास 

एक दौर था ……..

एक पका हुआ आम लक्ष्य था 

उसी पर अपना अक्ष था 

हम बहुत सारे वह एक 

फिर भी मार रहे पत्थर फेक 

सारे यत्न – प्रयत्न उसके लिए 

कभी न थकने का सिलसिला था 

अब मैं आम आदमी हूं 

सब आदमी को आम समझता हूं 

अब पके आम बहुत सारे 

पर मैं अकेला हूं खड़ा 

देख सकता हूं कुछ कर नहीं 

खोजने आया हूं उस टोली को 

पर उनका अब मिलना होता नहीं 

वह बगीचा जो सघन था 

जहां किलकारी चहचहाहट कौतूहल था 

गूंजती अब साए- साए की आवाज

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