जिसपे चले आज रस्ता कुछ ऐसा था
मौसम सुहाना पर हाल बड़ा खस्ता था ।
राह में निशान थे पहले से चले हुए राहगीरों के
खुद चलने से मालूम हुआ जान कितना सस्ता था ।
काली घटायें भी देख रही थीं पथिक का हाल
ये रास्ते कैसे बने पथिक के लिए जी का जंजाल।
इन रास्तों को देखके सोचता हूं मैं ये
शेयर बाज़ार में कैसे आता है उछाल ।
फ़िसलने के लिए रास्तों का टेढ़ा होना ज़रूरी नहीं
वैसे भी सीधे रास्तों ने भी बहुतों को फ़िसलाया है ।
रास्ते टेढ़े- मेढे, उबड़ – खाबड़ हो या पथरीला
चलने वालों का हौसला हो बुलन्द व गर्वीला ।
ऐ काली घटाये यू ना डरा हम राही को
अपनी भुजाओं से मोड़ी है तबाही को ।
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