9 May 2014 | ९ मई २०१४

tilt-shift photography of man

चुभती धूप बिलखती जिंदगी, रेल के डिब्बों के खेल में कोई कमी नहीं, भागम-भाग है, सबको जल्दी जाने की हड़बड़ी है। मैंने ट्रेन के दो टिकट लिये, प्रताप भी साथ में है, डी- 6 की बोगी थी, जनशताब्दी ट्रेन, सुबह छह बजकर पच्चीस मिनट में ट्रेन की सीटी बजी हम पहले से बैठे थे। कुछ दूरी चलने के बाद थर्ड जेंडर की तालियां कानों में सुनाई देने लगी। कुछ लोगों के दिल की धड़कनें बढ़ गई वह हिल उठे, कुछ लोगों की होठों में अनायास मुस्कान आ गई मैंने देखा कुछ लोगों ने तो अपनी आंखें भी बंद कर दी उनकी मनोदशा विचित्र थी। मन में उहापोह क्या होगा भगवान?  हे भगवान! हम सब क्रियाएं चुपचाप देखते रहे कुछ लोगों ने फिर आ गए कह कर मुंह मोड़ लिया।

कुदरत के भी अपने कुछ सिद्धांत एवं नियम है उनमें वह किन्नर भी शामिल हैं । कुछ ही दिन पहले किन्नरों को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव (लोकसभा चौदहवीं) के लिए उनको अलग तृतीय लिंग के रूप में परिभाषित कर विश्व के प्रथम ऐसा लोकतंत्र देश होने का गौरव प्राप्त किया जो उन्हें राजनीतिक अधिकार प्रदान कर रही है। पर दिल्ली अभी दूर है उनके लिए, परन्तु यह एक शानदार शुरुआत थी।  मानवता के एक नए आयाम को स्थापित करने की जो वर्षो से उपेक्षित तिरस्कृत एवं हताश हुए हताशा के समंदर में गोते खाते हुए थे। अस्तित्व होकर भी उनकी सामाजिक धरातल पर अस्तित्व ना के बराबर माना जाता रहा । उस निर्णय से पूर्व इतिहास गवाह है उन्होंने बहुत बड़े-बड़े काम किए हैं मलिक काफुर के रूप में।  शबनम मौसी ने विधायक के पद पर जिम्मेदारी से काम किया। पर इस पुरुष प्रधान समाज में नारी एवं नारी जैसी अन्य रचना पर अपनी सोच शक्ति व सामर्थ से हमेशा प्रहार किया है उसे नीचा दिखाने की कोशिश की है। सदैव उसे दोयम दर्जा दिया है । 

बोगी में बैठे कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट की उनके संबंध में दिए निर्णय की सराहना कर रहे थे । यह अच्छा किया उन्हें प्रकृति ने रचा है वह भी प्रकृति के अंग हैं तो उन्हें समाज के अधिकारों से वंचित रखना तथा समाज की धारा में शामिल न करना नाइंसाफी होगी।  उनके साथ हाथों पर नोटों की लड़ियां जो उंगलियों के बीच फंसी है, होठों पर मुस्कान एवं सुंदर वस्त्र है पर बहुत कम लोगों को यह मालूम है जो उनके अंतर की अंतर्दशा से परिचित थे । क्या पैसों से ही सब कुछ या सुख प्राप्त किया जा सकता है ?  क्या रुपया ही सब कुछ होता है ?  क्या यह रुपयों से सब जरूरत की पूर्ति हो सकती है ?  यह सारे प्रश्न सोचने पर मजबूर करते हैं ।

तभी कुछ लोग उनके आय की गणना में जुट गए उनके नोटों के आधार पर जो उनकी उंगलियों के बीच फंसी थी हमारे पास में आए हमने ₹100 का नोट दिया उसे लेकर वे ₹90 वापस कर बिना कुछ बोले आशीर्वाद देकर आगे मुस्कुराते चले गए । पर हमने उनके अंतस को आंखों की गहराइयों से देखा।  वे न जाने कितने चेहरों को देखते होंगे रोज , उन्हें मनोभावों को अच्छी तरह से पढ़ना आता होगा । उनकी अपनी टोली थी कुछ मनचले नव युवा भी उनकी तारीफों से उन्हें कुछ खुशी के फूल छिड़क रहे थे । पर वे यह अच्छी तरह जानते थे कि यह भी समंदर की लहरों की तरह समाज में जाकर किनारों में खो जाएंगे।  युवा को दुनियादारी की ज्ञान अभी नहीं है, व्यक्ति अकेला अलग होता है एवं समाज की भीड़ में अलग व्यवहार करता है । भीड़ में उसकी अभिव्यक्ति दब जाती है अपना स्टेशन अब आ चुका था । हमें उतरना है या मंथन मन मे आ चुका था बैग एवं सामान लेकर उतरे ।

घाम त्वचा पर गहरा चुंबन दे रही थी जो बड़ी असहनीय था। माथे पर गमछा सफेद बांधा नाक पर ऐनक चढ़ा बालौदा- बाजार की ओर जाने के लिए स्टेशन की दूसरी तरफ गए वहां हमने कुछ कलेवा ग्रहण किया। जाने के लिए स्टैंड पर पहुंचें देखा लोगों को भेड़ बकरी की तरह साथ ठुसे जा रहे हैं पर कोई प्रतिकार नहीं सब स्वीकार है।  ऊपर से ऐसी गर्मी । मई का महीना था सूर्य देवता अपने आग में घी डाल रहे थे । पानी पीते ही कई दरवाजे से बाहर तुरंत निकल आ रहा था।  हमने वाणिज्य कर ऑफिस भाटापारा मुख्यालय के बारे में पूछा चालक को इस बारे में सही जानकारी नहीं था पर वह यही कहा कि बलोदा बाजार में है। हमें उसके अनुभव से संदेह हो रहा था फिर भी हमने उसे दोबारा पूछा उसने हां बलौदा बाजार में है कहां । प्रताप आगे बैठा मैं पीछे तभी एक सज्जन आकर बैठे गाड़ी आगे चली थी 1 किलोमीटर के आसपास की सज्जन ने कहा आप कहां जा रहे हैं प्रताप ने कहा वाणिज्य कर ऑफिस तभी उन्होंने कहा वह तो भाटापारा में ही है।  आप उधर कहां जा रहे हो तभी ऑटो चालक के मन में अफसोस की लहर दौड़ गई हम चौक पड़े भाटापारा में उन्होंने कहा है चालक के हाथ थम गए वहां कि हमने सामान लेकर उतरा उसने कहा क्या  साहब बीच में धोखा दे रहे हैं ? हमने कहा जनरल नॉलेज ठीक  करो मुख्यालय एवं जगहों का पता याद करो, झूठ मत बोलो ताकि पुनः ऐसी धोखा आपको खाना ना पड़े । हम मुसाफिर हैं पता आप से पूछकर चढ़े थे पता हमें मालूम  है पर रास्ता एवं जगह आपको मालूम होना चाहिए । इसलिए लोगों को भटकाओ मत, इसी में सबकी भलाई है।  यह लेक्चर के साथ हम पीछे वह आगे बढ़ा।  हम पीछे एक रेस्तरां में बैठे और दो कोल्ड ड्रिंक्स का आर्डर दिया उसके आने तक हमने नेट से उसके पता चेक करने की कोशिश में लगे लग गए । 

दोनों थे हम लाल बुझक्कड़ पता नहीं निकाल पाए उस समय मोबाइल का जमाना था। वहीं पास में बैठे दो सज्जन आपस में बात कर रहे थे उनमें से एक युवा था जो काफी संतुलित था, मैंने प्रताप से कहा यह पता बता सकता है लेकिन हमने उसको ना पूछ कर दूसरे व्यक्ति को उम्रदराज एवं अनुभवी था उससे पूछा वाणिज्य कर ऑफिस भाटापारा में कहां पर है। वह कुछ सोचते हुए अपने चेहरे की दर्पण में हमारे लिए खेद व्यक्त करते हुए कहा मुझे नहीं । पता वह सामने बैठे लड़के को पता करने को कहा वह लड़का स्थानीय था उसने अपने मोबाइल से कॉल कर पता पूछ कर हमें बताया यह हथनी पारा जयसवाल होटल के पास है तरेंगा रोड में  था  ।  प्रताप की स्थिति को मैं समझ सकता हूं इस स्थिति को बहुत पहले मैं भी अनुभव कर चुका था उसके मन में भी अपनी सफलता के  रसपान करने की अनुभूति जागृति से ओतप्रोत है।  मेरा मन कहो तो कौतूहल से भरा पड़ा था । स्टाफ के प्रति अपने कार्यस्थल के प्रति, मौसम में तपीस भी जोरों पर थी मानों सूर्यदेव कह रहे हो सोना आग में जलकर ही कुंदन बनता है, उसी तरह इंसान विषमताओं में हीनिखरता है । सुख की जिंदगी पल अक्सर हमें छोटी लगती है क्योंकि हम उसे आराम कर सोचकर ज्यादा बिताते हैं।  लेकिन दुख में इंसान ज्यादा जीता है क्योंकि हर पल हमें भारी पड़ता है एवं काफी अनुभव बड़ा होता है। हमारी नींद कम हो जाती है, समय बड़ा हो जाता है, वास्तविक समय तो वहीं 24 घंटे के होते हैं पर सुख एवं दुख से तुलना करें तो हम पाते हैं कि सुख- दुख दोनों में अनुभव का बड़ा फर्क होता है । यादों का फर्क होता है जीने की तरीके का फर्क होता है ।

मैंने अपना कार्य 9/05/ 2014 को ज्वाइन किया यह तिथि वास्तव में योगात्मक थी इसी प्रकार मेरी प्रतिभा को भी मुझे योग्यता से योगात्मक करते हुए अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करना है । उसमें गुलमोहर के फूल रास्ते में ऐसे खिले झूम रहे थे, मनमोहक लग रहे थे जैसे सूर्य की आग में भी कहीं शीतलता है, रचना है। यह व्यक्ति को उस समय सीख दे रहा है  कि आग में ही रोटी पकते हैं, तपिश के बाद ही बारिश सावन की आती है।  रिक्शावाला भी गर्मी से तर अपने माथे को गमछा से बार-बार पोंछता।  हम अपने ऑफिस के सीढ़ियों में कदम रखे, सीढ़ी चढ़ते वक्त धड़कनें तेज हो गई जाने आगे क्या होगा ? हमने ऑफिस में प्रवेश किया सब ने हमें जो बाहर थे देखा एक प्रश्नवाचक मुद्रा में । तभी एक व्यक्ति हमें एक कमरे में थे लेखापाल समझते देर न लगी । यह बड़े बाबू है इस ऑफिस के।  हमने अपना परिचय दिया और बताया कि मेरी नियुक्ति इस कार्यालय में वाणिज्यिक कर निरीक्षक के रूप में  हुआ है।  उन्होंने गर्मजोशी से स्वागत किया आंखें उम्र दराज पर एक चमकती माथे पर शिकन थी, अनुभवों में झुर्रियां थी ऊंचा पतले शरीर लिए बिल्कुल पुराने फिल्म के जीवन की तरह पर वैसे ही तेज एवं चतुर भी। उनके काम करने की दक्षता काबिले तारीफ था। मेरे दोस्त और मैंने प्रशंसा की और हाथ मिलाया और सर आपको देखकर हमें काम करने की प्रेरणा मिलती है। वह भी अनुभव के खान हैं उनको जिंदगी के हर अच्छे बुरे का अनुभव है वह घाट घाट का पानी पीने वाला सहयोगी स्वभाव का आदमी है जो  बड़ा मजाकिया भी है ।

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