मुक़द्दर / Muqadar

हालात  जब  भी  मुश्किलों  से  भरा  था

सबने  अपना – अपना  रुख  बदल  लिया

 

 

 

जलते रहे तब  लोगों ने आके गर्माहट ली

अपनी जलन बुझी तो लोग मायूस हो गए

 

 

 

सबने आके पूछा जलने का किस्सा क्या है

सच बचता कैसे सबने  हिस्सा मिला दिया

 

 

 

वो   रोक  ना  सके   नकाबों  में   खुदको

मोहब्बत  जब भी आग में तब्दील  हो गए

 

 

 

तारीफों  के  पुल  पे उन्हें  चलना पसंद था

सच के आईना से   उनको  सरोकार न था

 

 

 

मुश्किलातों  से  लड़के  रोशनी  पाई  जब

हमसे मिलने  के  फ़ेहरिस्त  में  पहले वे थे

 

 

 

अपनो ने भरोसा तोड़ा खुद पे यकीन आया

तभी  से  मुक़द्दर   ने    हमारा   मुस्कुराया …

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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